Sunday 18 September 2011

SANT KABIR JI

“O Kabir! This human being collects money bit by bit and 
amasses wealth in crores, but at the time of his death, 
nothing accompanies him. In fact, he goes naked and with 
empty hands from this world”. (Page 1372)

Thursday 15 September 2011

ਅਸੁਨਿ ਪ੍ਰੇਮ ਉਮਾਹੜਾ

Barah Maha Majh (By Shri Guru Arjan Dev Ji)

ਅਸੁਨਿ ਪ੍ਰੇਮ ਉਮਾਹੜਾ ਕਿਉ ਮਿਲੀਐ ਹਰਿ ਜਾਇ ॥ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪਿਆਸ ਦਰਸਨ ਘਣੀ ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮਾਇ ॥ ਸੰਤ ਸਹਾਈ ਪ੍ਰੇਮ ਕੇ ਹਉ ਤਿਨ ਕੈ ਲਾਗਾ ਪਾਇ ॥ ਵਿਣੁ ਪ੍ਰਭ ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥ ਜਿੰਨ੍ਹ੍ਹੀ ਚਾਖਿਆ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਸੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਇ ॥ ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ਬਿਨਤੀ ਕਰਹਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥ ਜੋ ਹਰਿ ਕੰਤਿ ਮਿਲਾਈਆ ਸਿ ਵਿਛੁੜਿ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਇ ॥ ਪ੍ਰਭ ਵਿਣੁ ਦੂਜਾ ਕੋ ਨਹੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਰਣਾਇ ॥ ਅਸੂ ਸੁਖੀ ਵਸੰਦੀਆ ਜਿਨਾ ਮਇਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥੮॥ [ਪੰਨਾ 135]



ਭਾਦੁਇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀਆ


     Barah Maha Majh (By Shri Guru Arjan Dev Ji)
ਭਾਦੁਇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀਆ ਦੂਜੈ ਲਗਾ ਹੇਤੁ ॥ ਲਖ ਸੀਗਾਰ ਬਣਾਇਆ ਕਾਰਜਿ ਨਾਹੀ ਕੇਤੁ ॥ ਜਿਤੁ ਦਿਨਿ ਦੇਹ ਬਿਨਸਸੀ ਤਿਤੁ ਵੇਲੈ ਕਹਸਨਿ ਪ੍ਰੇਤੁ ॥ ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਨਿ ਦੂਤ ਜਮ ਕਿਸੈ ਨ ਦੇਨੀ ਭੇਤੁ ॥ ਛਡਿ ਖੜੋਤੇ ਖਿਨੈ ਮਾਹਿ ਜਿਨ ਸਿਉ ਲਗਾ ਹੇਤੁ ॥ ਹਥ ਮਰੋੜੈ ਤਨੁ ਕਪੇ ਸਿਆਹਹੁ ਹੋਆ ਸੇਤੁ ॥ ਜੇਹਾ ਬੀਜੈ ਸੋ ਲੁਣੈ ਕਰਮਾ ਸੰਦੜਾ ਖੇਤੁ ॥ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਚਰਣ ਬੋਹਿਥ ਪ੍ਰਭ ਦੇਤੁ ॥ ਸੇ ਭਾਦੁਇ ਨਰਕਿ ਨ ਪਾਈਅਹਿ ਗੁਰੁ ਰਖਣ ਵਾਲਾ ਹੇਤੁ ॥੭॥ [ਪੰਨਾ 134]

Tuesday 13 September 2011

गुरु मुरीद - बुल्लेशाह जी

भूमिका:
पंजाब की माटी की सौंधी गन्ध में गूंजता एक ऐसा नाम जो धरती से उठकर आकाश में छा गया| वे ही भारतीय सन्त परम्परा के महान कवि थे जो पंजाब की माटी में जन्मे, पले और उनकी ख्याति पूरे देश में फैली| ऐसे ही पंजाब के सबसे बड़े सूफी बुल्ले शाह जी हुए हैं|

परिचय:

बुल्ले शाह का मूल नाम अब्दुल्लाशाह था| आगे चलकर इनका नाम बुल्ला शाह या बुल्ले शाह हो गया| प्यार से इन्हें साईं बुल्ले शाह या बुल्ला कहते| इनके जीवन से सम्बन्धित विद्वानों में अलग-२ मतभेद है| इनका जन्म 1680 में उच गीलानियो में हुआ| इनके पिता शाह मुहम्मद थे जिन्हें अरबी, फारसी और कुरान शरीफ का अच्छा ज्ञान था| वह आजीविका की खोज में गीलानिया छोड़ कर परिवार सहित कसूर (पाकिस्तान) के दक्षिण पूर्व में चौदह मील दूर "पांडो के भट्टिया" गाँव में बस गए| उस समय बुल्ले शाह की आयु छे वर्ष की थी| बुल्ले शाह जीवन भर कसूर में ही रहे|

इनके पिता मस्जिद के मौलवी थे| वे सैयद जाति से सम्बन्ध रखते थे| पिता के नेक जीवन के कारण उन्हें दरवेश कहकर आदर दिया जाता था| पिता के ऐसे व्यक्तित्व का प्रभाव बुल्ले शाह पर भी पड़ा| इनकी उच्च शिक्षा कसूर में ही हुई| इनके उस्ताद हजरत गुलाम मुर्तजा सरीखे ख्यातनामा थे| अरबी, फारसी के विद्वान होने के साथ साथ आपने इस्लामी और सूफी धर्म ग्रंथो का भी गहरा अध्ययन किया|

परमात्मा की दर्शन की तड़प इन्हें फकीर हजरत शाह कादरी के द्वार पर खींच लाई| हजरत इनायत शाह का डेरा लाहौर में था| वे जाति से अराई थे| अराई लोग खेती-बाड़ी, बागबानी और साग-सब्जी की खेती करते थे| बुल्ले शाह के परिवार वाले इस बात से दुखी थे कि बुल्ले शाह ने निम्न जाति के इनायत शाह को अपना गुरु बनाया है| उन्होंने समझाने का बहुत यत्न किया परन्तु बुल्ले शाह जी अपने निर्णय से टस से मस न हुए| परिवार जनों के साथ हुई तकरार का जिक्र उन्होंने इन शब्दों में किया -


बुल्ले नूं समझावण आइयां
भैणा ते भरजाइयां
मन्न लै बुल्लिआ साडा कहणा
छड दे पल्ला, राइयां|
आल नबी औलाद अली नूं
तूं क्यों लीकां लाइयां?

भाव- तुम नबी के खानदान से हो और अली के वंशज हो| फिर क्यों अराई की खातिर लोकनिंदा का कारण बनते हो| परन्तु बुल्ले शाह जी जाति भेद-भाव को भुला चुके थे| उन्होंने उत्तर दिया -

जेहड़ा सानूं सैयद आखे
दोजख मिले सजाइयां |
जो कोई सानूं, राई आखे
भिश्ती पींगा पाइयां||

भाव - जो हमे सैयद कहेगा उसे दोजख की सजा मिलेगी और जो हमे अराई कहेगा वह स्वर्गो में झूला झूलेगा|
 

बुल्ले शाह व उनके गुरु के सम्बन्धों को लेकर बहुत सी बाते प्रचलित हैं| एक दिन इनायत जी के पास बगीचे में बुल्ले शाह जी पहुँचे| वे अपने कार्य में व्यस्त थे जिसके कारण उन्हें बुल्ले शाह जी के आने का पता न लगा| बुल्ले शाह ने अपने आध्यात्मिक अभ्यास की शक्ति से परमात्मा का नाम लेकर आमो की ओर देखा तो पेडो से आम गिरने लगे| गुरु जी ने पूछा, "क्या यह आम अपने तोड़े हैं?" बुल्ले शाह ने कहा न तो मैं पेड़ पर चढ़ा और न ही पत्थर फैंके| भला मैं कैसे आम तोड़ सकता हूँ|

बुल्ले शाह को गुरु जी ने ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "अरे तू चोर भी है और चतुर भी|" बुल्ला गुरु जी के चरणों में पड़ गया| बुल्ले ने अपना नाम बताया और कहा मैं रब को पाना चाहता हूँ| साईं जी ने कहा, "बुल्लिहआ रब दा की पौणा| एधरों पुटणा ते ओधर लाउणा|" इन सीधे - सादे शब्दों में गुरु ने रूहानियत का सार समझा दिया कि मन को संसार की तरफ से हटाकर परमात्मा की ओर मोड़ देने से रब मिल जाता है| बुल्ले शाह ने या प्रथम दीक्षा गांठ बांध ली| सतगुरु के दर्शन पाकर बुल्ले शाह बेखुद हो गया और मंसूर की भांति बेखुदी में बहने लगा| उसे कोई सुध - बुध नहीं रही|

कहते हैं कि एक बार बुल्ले शाह जी की इच्छा हुई कि मदीना शरीफ की जियारत को जाए| उन्होंने अपनी इच्छा गुरु जी को बताई| इनायत शाह जी ने वहाँ जाने का कारण पूछा| बुल्ले शाह ने कहा कि "वहाँ हजरत मुहम्मद का रोजा शरीफ है और स्वयं रसूल अल्ला ने फ़रमाया है कि जिसने मेरी कब्र की जियारत की, गोया उसने मुझे जीवित देख लिया|" गुरु जी ने कहा कि इसका जवाब मैं तीन दिन बाद दूँगा| बुल्ले शाह ने अपने मदीने की रवानगी स्थगित कर दी| तीसरे दिन बुल्ले शाह ने सपने में हजरत रसूल के दर्शन किए| रसूल अल्ला ने बुल्ले शाह से कहा, "तेरा मुरशद कहाँ है? उसे बुला लाओ|" रसूल ने इनायत शाह को अपनी दाई ओर बिठा लिया| बुल्ला नजरे झुकाकर खड़ा रहा| जब नजरे उठीं तो बुल्ले को लगा कि रसूल और मुरशद की सूरत बिल्कुल एक जैसी है| वह पहचान ही नहीं पाया कि दोनों में से रसूल कौन है और मुरशद कौन है|


बुल्ले शाह जी लिखते हैं -

हाजी लोक मक्के नूं जांदे
असां जाणा तख्त हजारे |
जित वल यार उसे वल काबा
भावें खोल किताबां चारे |



Santo Ki Bani ( संतो की बाणी )

" गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत-भूमिभागे ।

स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात ॥ "

                                                                                                                                                                      
                                       ( विष्णुपुराण -2.6.24 ) 

            अर्थात देवगण  भी  गान  करते  हैं कि  भारतभूमि में जनम लेने वाले लोग धन्य हैं] स्वर्ग और परमपद के समान इस देश  में देवता भी देवत्व को छोड़कर मनुषे रूप में जनम लेना चाह्तें हैं [